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Friday 5 October 2012

गांधीजी के सपनों का भारत और वर्तमान लोकतंत्र - 2

      नेताओं ने बेच दिया ईमान को 

                 
     
      जिनका ईमान ही बिक गया हो , वे क्या नहीं बेच सकते।जिनकी बदौलत देश को आज़ादी मिली, वे सौदागर नहीं थे। उन्हें आज़ादी की लड़ाई के बदले कुछ चाहिए भी नहीं था, लेकिन सियासी नेताओं की जात और जमात ने कुछ दिनों तक उन आज़ादी के दीवानों की कुर्बानियों को बेचा , फिर उनके नाम को बेचा और अब मुल्क को बेच रहे हैं। इस मुल्क में अंग्रेजों को पैर जमाने का मौक़ा तब मिला था  जब मुल्क के हुक्मरान ऐयाशियों में डूबे थे। आज हालात फिर वही हैं , रोज ही सियासताबाजों की, नौकरशाहों की रंगरेलियों की नयी- नयी कहानियां सामने आ रही हैं। जो खुद अपनी नीयत नहीं संभाल सकते वे मुल्क संभाल रहे हैं तो मुल्क के जैसे हालात होने चाहिए वैसे ही हो रहे हैं। हुक्मरानों ने खुद को विदेशी हाथों में गिरवी रख दिया है , देश और देशवासियों का सौदा तय हो चुका है। यह जो ऍफ़ डी आई का शोर सुनायी दे रहा है, वह देश के खुदरा बाज़ार पर विदेशी कब्ज़ा कराने की देशी साजिश है। जब सारी दुनिया आर्थिक मंदी के दौर से गुज़र रही थी , तब भी इस मुल्क में आर्थिक मंदी नहीं आयी जैसी कि अमरीका आदि मुल्कों में आयी थी। इसकी वजह यह थी कि यहाँ पूंजी का बहाव थमा नहीं था। हर चौराहे और नुक्कड़ पर, हर गली और मोहल्ले में छोटी- छोटी दुकानें और सुबह से लेकर शाम तक छोटी- छोटी जरूरत की चीजों की लगातार खुदरा बिक्री ने ही इस मुल्क को आर्थिक मंदी से बचाए रखा था।
      अब अगर विदेशी पूंजी देश के बाज़ारों पर काबिज होगी तो उनके बड़े- बड़े शापिंग माल खुलेंगे। चूंकि देश के हुक्मरान इस मुल्क के खुदरा व्यापार का विदेशी हाथों सौदा कर चुके हैं, इसलिए उनके हितों के लिए वे गली- मुहल्लों, नुक्कड़ और चौराहों की फुटकर और छोटी- छोटी दुकानों का धंधा बंद करा देंगे। तब बेरोजगारी और बढ़ेगी। वही ईस्ट इंडिया कंपनी का दौर एक बार फिर देश में दस्तक दे रहा है। तब एक मुल्क की एक कंपनी आयी थी , अब कितने मुल्कों की कितनी कम्पनियां आयेंगी इसका शुमार नहीं है। 
      हमारा ही पानी हमारे ही हाथों बंद बोतलों में बेचा जा रहा है 15 रुपये बोतल। जो मुफ्त मिला करता था क्योंकि वह अपना था , वही अब महंगे दामों पर खरीदना पड़ रहा है। पैसा विदेश जा रहा है क्योंकि बोतलबंद पानी बेचने वाली ज्यादातर कम्पनियां दूसरे मुल्कों की हैं। हमारे साथ क्या हो रहा है , इसे हम समझना नहीं चाहते। यह शुरुआत थी , कल जब और सारी चीजें भी ऐसे ही बिकेंगी तो हम और भी, इससे भी ज्यादा मजबूर होंगे। 
    गांधीजी के ख़्वाबों के हिन्दुस्तान में मुल्क की सत्तर फीसदी आबादी थी , उसकी खुशहाली के तरीके थे। गावों में रोजगार पैदा करने के तरीके थे, खेती करने वाले किसान थे, मज़दूर थे और मेहनतकश थे। अब वे वोट देने की मशीन बना दिए गए हैं। हर चुनाव में सियासतबाज उन्हें नए ख्वाब दिखाते हैं , वोट बटोरते हैं और अगले चुनाव तक के लिए उन्हें खुदा के भरोसे छोड़ कर अपनी तिकड़मों में लग जाते हैं। हर रोज एक नए घोटाले की खबर सामने आती है और वह घोटाला लाखों का नहीं , कभी करोड़ों का होता है , कभी अरबों का और कभी लाखों करोड़ का। ऐसे घोटालों के खिलाफ उठाने वाली सियासी आवाजें भी ईमानदार नहीं होतीं। जिनके हाथ में हुकूमत होती है वे लूटते हैं , जो मुखालिफ दल होते हैं वे इसलिए चिल्लाते हैं कि उन्हें नहीं मिला। आज देश में कोई ऐसी सियासी पार्टी नहीं बची जो सत्ता में पहुँची हो और उसके नाम मुल्क के लूट की हिस्सेदारी न दर्ज हो। 
     हर सियासताबाज अपने लिए मौक़ा चाहता है। मौक़ा नहीं मिलता तभी तक वह ईमानदार है। लूट के तरीके वे बताते हैं जो नौकरशाह हैं। सारे कुएं में ही भांग है और हमाम में सभी नंगे हैं। जब भ्रष्टाचार का विरोध होता है तो अवाम में उम्मीद जगती है। लोग उसके साथ जुटाने लगते हैं, खड़े होने लगते हैं लेकिन चाँद रोज बाद ही उनकी हकीकत भी सामने आ जाती है। अन्ना आन्दोलन में मेरी भी दिलचस्पी बढ़ी थी, लेकिन दूध का जला मट्ठा  भी फूंककर पीता है। हम इससे पहले के कई ऐसे आन्दोलन देख चुके हैं। उनका हस्र भी देख चुके हैं और जो विरोध कर रहे थे उनके दामन भी दागदार होते देख चुके हैं। हमारे पास भी लोग आते हैं , सबको और सबकी असलियत को समझ पाना भी आसान नहीं है, यही वजह है कि  किसी के साथ खड़े होने में भी कई बार सोचना पड़ता है। जो चहरे पर दिख रहा है वही दिल में भी है यह समझना और जान पाना आसान नहीं है।
      जर्नलिस्ट्स , मीडिया एंड रायटर्स वेलफेयर एसोसिएशन की और से जब उसके प्रोग्रामों में शिरकत की बात की गयी और उसका जो भी साहित्य मेरे सामने आया , उससे मुझे तसल्ली हुयी कि ये लोग वास्तव में मुल्क और अवाम की बहतरी के लिए आवाज उठा रहे हैं। मैं हर अच्छे काम में साथ हूँ और जहां यह मीडिया तंजीम मुझे बुलाना चाहेगी मैं हाज़िर होऊँगा। और भी लोगों को मुल्क और अवाम की हमदर्दी है , कुछ करने की चाहत है। आप कुछ अच्छा करने के लिए एक कदम बढ़ाएं , लाखों लोग आपका साथ देंगे , बशर्ते आप सच्चाई के साथ सच्चाई के लिए लड़ रहे हों।

                          - मौ .अबुल इरफ़ान मियाँ फिरंगीमहली

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