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Tuesday 16 July 2013

जम्मू-कश्मीर और धारा-3 7 0

                   जम्मू-कश्मीर और धारा-3 7 0

   भारतीय जनता पार्टी की और से यदा-कदा जम्मू-कश्मीर में धारा 3 7 0 समाप्त किये जाने की मांग उठायी जाती रहती है। हाल ही में भाजपा नेता और पार्टी की ओर से भावी प्रधानमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार , गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फिर जम्मू-कश्मीर से धारा 3 7 0 हटाने की बात कहकर राज्य की सियासत में हलचल पैदा कर दी। बुधवार 2 6 जून को जम्मू और कश्मीर को जोड़ने वाली काजीगुंड-बनिहाल रेल ट्रैक के उदघाटन अवसर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूं पी ए अध्यक्ष सोनिया गांधी की उपस्थिति में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उम्र अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य में संविधान की धारा 3 7 0 को समाप्त करने के लिए मेरी लाश पर से गुजरना होगा।
      पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश के काबीना मंत्री मो० आज़म खान ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर , भारत का हिस्सा नहीं है तो लोग उनकी आलोचना करने ही नहीं, उन्हें देशद्रोही तक करार देने पर आमादा हो गए थे। लेकिन आज़म खान ने तो सच्चाई को ही आइना दिखाया था। आखिर क्यों नहीं खरीद सकता कोई भारतीय जम्मू-कश्मीर में अचल सम्पत्ति और वहाँ के निवासियों को भारत के किसी भी हिस्से में चल-अचल संपत्ति खरीदने, बनाने का अधिकार क्यों है?
      भारत के संविधान के अनुसार देश के नागरिकों को देश भर में कहीं भी बसने, जमीन-जायदाद खरीदने का अधिकार प्राप्त है, सिवाय जम्मू-कश्मीर के।यदि भारत के लोगों को जम्मू-कश्मीर में  यह अधिकार प्राप्त नहीं है तो जम्मू-कश्मीर  को भारत का अभिन्न अंग कहने और उस राज्य पर भारत का आधिपत्य का दावा क्या खोखला नहीं है ? उमर  अब्दुल्ला जैसे लोग यदि नहीं चाहते कि भारत जम्मू-कश्मीर में अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग देश के अन्य राज्यों की तरह ही करे तो फिर उन्होंने किस अधिकार से केंद्रीय मंत्रिमंडल में भागीदारी निभाई थी और किस अधिकार से इस समय उनके पिटा फारुख अब्दुल्ला केंद्र सरकार का हिस्सा बने हुए हैं ?
     उल्लेखनीय है कि धारा ३ ७ ० ही जम्मू-कश्मीर के लोगों को यह एहसास कराती रहती है कि वे भारत से अलग हैं , उनका भारत से प्रथक अस्तित्व है , और यही एहसास अलगाववाद को जन्म देता है/ जब देश का संविधान जम्मू-कश्मीर के लोगों पर लागू ही नहीं होता तो वे भारत के प्रति निष्ठा और हमदर्दी रखें भी तो क्यों ?आज जम्मू -कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का वहां के अलगाववादियों ने जीना मुहाल कर रखा है / अपनी इज्जत बचाकर बहुत से कश्मीरी पंडित राज्य से पलायन कर गए / उनके घरों और जायदाद पर वही अलगाववादी कुण्डली मारे बैठे हैं/ हज़ारों कश्मीरी पंडित अभी भी शरणार्थी के रूप में दिल्ली में ही जिन्दगी बशर कर रहे हैं / मीडिया उनकी व्यथा को प्रायः सार्वजनिक भी करता है , लेकिन संवेदनहीन राजनैतिक तंत्र पर उसका असर नहीं होता /
   यदि जम्मू-कश्मीर में धारा ३ ७ ० लागू न होती  और वहां भारतीय संविधान पूरी तरह प्रभावी होता तो शायद कश्मीरी पंडितों पर ज्यादतियां करने का साहस अलगाववादी ताकतें नहीं कर पातीं, और अगर करतीं भी तो उनको मुहतोड़ जवाब भी दिया जा सकता था / यदि जम्मू-कश्मीर में किसी भी भारतीय नागरिक को स्थायी संपत्ति बनाने का अधिकार होता तो वहां देश के कारपोरेट घराने पूंजी लगा सकते थे , नए उद्दयम स्थापित कर सकते थे / इससे वहां के बेकार नौजवानों के हाथों को काम मिलता, बेकारी कम होती और राज्य का आर्थिक विकास भी होता / सबसे बड़ा लाभ यह होता कि जब बेकार युवा हाथों में काम होता तो प्रथाकतावादी ताकतों की शक्ति खुद ही घाट जाती /
      आज जम्मू-कश्मीर में सक्रीय दो बड़ी सियासी पार्टियों नेशनल कांफ्रेंस और पी डी पी के अलगाववादी ताकतों से रिश्ते जगजाहिर हैं जो कश्मीर घाटी की शान्ति स्थापना में सबसे बड़ी बाधा है/ यदि धारा ३ ७ ० की बाधा न होती तो कश्मीर घाटी में देश के अन्य भागों के लोग जमीनें खरीदते, पर्यटक और विश्राम गृह बनवाते , खुद वहां बसते और उस सूरत में कश्मी में उस सम्प्रदाय का एकाधिकार समाप्त हो जाता जो वहां विसंगतियों को फैलाने के लिए जिम्मेदार है / यह सब तभी संभव है जब केंद्र में दृढ इक्षाशक्ति वाली सरकार हो और राज्य सरकार की नाराजगी की परवाह किये बिना धारा ३ ७ ० समाप्त कर आम भारतीय को घाटी में भी वही अधिकार प्रदान करे जो देश के अन्य राज्यों में प्राप्त हैं / मौकापरस्तों और देश के स्वार्थी तत्वों ने पृथ्वी के स्वर्ग को नर्क बनाकर रख दिया है , क्या कश्मीर कभी मुक्त हो पायेगा इन राक्षसी पंजों से ?
                                                                           - एस .एन .शुक्ल