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Sunday 16 September 2012

लोकतंत्र, मीडिया और मुसलमान -4

    " मुसलमानों की देशभक्ति पर कोई संदेह नहीं "


       आतंकी नेटवर्क भारत के बाहर से संचालित हो रहा है , हम उसका खामियाजा भुगत रहे हैं और दुर्भाग्य से  लालच या नासमझी में हमारे अपने देश के कुछ लोग भी उस आतंकी नेटवर्क के हाथों खेल रहे हैं। ऐसे लोग किसी सम्प्रदाय विशेष के ही नहीं हैं , वे हिन्दू भी हो सकते हैं, मुसलमान भी, सिख भी और ईसाई भी, लेकिन चूंकि भारत में आतंकी वारदातों को अंजाम देने में पड़ोसी देश पाकिस्तान की भूमिका स्पष्ट हो चुकी है जोकि एक मुस्लिम राष्ट्र है और भारत से ही अलग होकर बना है , इसलिए जब भारत में कोई ऐसी घटना होती है तो सबसे पहले मुस्लिम समुदाय को ही संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगता है। यह पूर्वागृह है जिसके कारण कई बार असली गुनाहगार बच निकालने में कामयाब रहते हैं , तो जो बेगुनाह पुलिस और कानूनी प्रताड़ना का शिकार बनाते हैं उनमें विद्रोह और आक्रोश पनपने लगता है। ऐसे आक्रोश को देशद्रोह का नाम दिया जाना उचित नहीं कहा जा सकता।
     ध्यान देने की बात है कि जब स्वाधीनता से पूर्व देश का बटवारा हुआ था और भारत , हिन्दुस्तान तथा पाकिस्तान दो टुकड़ों में बाता जा रहा था , उस समय भारत के मुसलमानों के सामने खुला विकल्प था कि वे चाहें तो भारत में रहें और न चाहें तो पाकिस्तान चले जाएँ। जो भारत को छोड़कर चले गए वे अपने नहीं थे और उनसे यह देश अपने प्रति किसी निष्ठा की अपेक्षा भी नहीं करता , लेकिन जिन मुसलमानों ने विकल्प मौजूद होने के बावजूद इस देश को, अपने मादरे वतन को छोड़कर जाना मंजूर  नहीं किया , उनकी इस देश के प्रति निष्ठा को संदेह की दृष्टि से कैसे देखा जा सकता है ? आज पकिस्तान की स्थिति क्या है अथवा भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों की वहां हैसियत क्या है , यह एक अलग प्रश्न है लेकिन जो बटवारे के समय दिखाए गए सपनों और सब्जबागों से प्रभावित हुए बिना इस देश की मिट्टी के प्रति अपने प्यार को छोड़ नहीं पाए उनकी इस देश के प्रति निष्ठा निर्विवाद है। 
     आज हमारे अपने ही बच्चे व्यावसायिक शिक्षा की डिग्रियां हासिल कर , अपने माँ - बाप, अपने देश को छोड़कर कैरियर के नाम पर , अपने सुखी भविष्य की उम्मीद में निःसंकोच देश छोड़कर जा रहे हैं। दूसरे देशों की नागरिकता हासिल कर प्रवासी भारतीय कहे जाने पर गर्व महसूस करते हैं। उनकी इस देश के प्रति निष्ठा की अपेक्षा तो उन भारतीय मुसलमानों की निष्ठा लाख गुना बेहतर है जो विकल्प के बावजूद भारत में रहे, भारत के रहे। 
      मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी अशिक्षा के अन्धकार में है। यही तबका मौकापरस्तों और राजनीतिबाजों का सबसे आसान शिकार है। कुर्सियां पाने , सत्ता हथियाने और राजनीति में जगह बनाने के लिए कुछ लोग साजिशें रचाते हैं। गरीब और अशिक्षित तबका ही ऐसे लोगों की साजिश का शिकार बनाता है और उसका खामियाजा समाज को और कई बार तो सारे देश को भुगतना पड़ता है। मुम्बई में मीडिया पर हमला, लखनऊ में अलविदा की नमाज के बाद लाठी- डंडों से लैस मीडिया पर हमला , इस देश के खिलाफ एक सुनियोजित षडयंत्र है। कोई भी नमाजी कभी लाठी- डंडे लेकर नमाज पढ़ने नहीं जाता , फिर उपद्रवियों के हाथों में डंडों का होना क्या यह साबित नहीं करता कि जिन्होंने भी ऐसा किया वे मुसलमान नहीं थे, वे साजिश के तहत मुसलमानों को बदनाम करने आये थे और करीब- करीब अपने मकसद में कामयाब भी रहे। ज़रा गौर करें , दिन भर के रोजे और तपती धूप में क्या रोजेदारों में इतनी ताकत हो सकती है कि वे हमलावर हों और शहर भर में पत्थर बरसाते घूमें ? इसका मतलब साफ़ है कि जिन्होंने भी हमला किया वे नमाजी नहीं थे और वे इस्लाम में आस्था रखने वाले मुसलमान भी नहीं थे। 
       जो भी हुआ , वह दुखद था , लेकिन जरूरी यह है कि उन जड़ों को तलाशा जाए जहां से इन विवादास्पद घटनाक्रमों की शाखाएं फूटीं। प्रहार जड़ों पर ही किया जाना चाहिए , क्योंकि जब तक ऐसे विवादों की जड़ें नहीं ख़त्म की जातीं तब तक वे कभी भी अपने अनुकूल वातावरण पाकर सर उठा सकती हैं। यद्यपि यह कहना आसान नहीं है कि परदे के पीछे साजिशें कौन रच रहा है , लेकिन इतना तय है कि जो कुछ भी हुआ वह साजिशों का ही परिणाम था। चाहे मुम्बई हो या लखनऊ , एक साथ एक बड़ी भीड़ का आक्रामक मुद्रा में निकल आना और हमलावर हो उठना जहां एक ओर साजिश का इशारा करता है वहीं देश के खुफिया तंत्र को चुनौती भी देता है। आखिर हथियारबंद इतनी बड़ी भीड़ कहाँ छुपी बैठी रही कि उसकी भनक सतर्कता एजेंसियों को भी नहीं लग पायी ?
      हम बहस कर सकते हैं लेकिन ऐसी घटनाओं पर विराम लगाने का काम तो शासन और प्रशासन को ही करना है। जरूरी है कि सरकारें ऐसी दुस्साहसिक घटनाओं को चेतावनी और चुनौती के रूप में स्वीकार करें और बिना किसी पक्षपात के उनसे सख्ती से निपटें। इन घटनाओं को हादसा अथवा किसी घटना की प्रतिक्रिया का नाम देकर चुप बैठ जाना भविष्य के किसी बड़े हादसे को आमंत्रित करना है। यदि दोषियों को सजा नहीं दी जाती तो जहां एक और उनके हौसले बढ़ेंगे वहीं उनकी देखादेखी दूसरे उग्रपंथी भी ऐसी हरकतें कर सकते हैं। माओवाद और नाक्सलवाद जैसे उग्रपंथी आन्दोलनों से यह देश पहले ही जूझ रहा है , यदि ऐसी घटनाओं की पुनः आवृति हुयी तो यह कोढ़ में खाज जैसी स्थिति होगी और जिस प्रकार हम पाकिस्तान के आतंरिक वर्ग संघर्ष पर खुश हो रहे हैं , हमें खुद ही वैसी ही विषम परिस्थियों का सामना करना पद सकता है।
     दुर्भाग्य से देश का राजनैतिक तंत्र अपने स्वार्थों के दायरे से बाहर नहीं निकल पा रहा है। विपक्ष सरकार की फजीहत पर खुश होता है कि शायद उसी के बीच से उसे रास्ता मिल जाए और सत्तापक्ष अपने मद में विपक्ष से रचनात्मक सहयोग की अपील भी नहीं करना चाहता। ऐसी परिस्थिति में देश के बुद्धिजीवी वर्ग की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उन्हें बंद कमरों की बहस से बाहर निकालकर  जागरूकता प्रयास की पहल करनी चाहिए क्योंकि देश को तोड़ने और लोकतंत्र के ताने- बाने को संदिग्ध बनाने की जिस प्रकार की साजिशें हो रही हैं वे भारत के भविष्य के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती हैं।

                                                                          -    प्रो . रमेश दीक्षित 

5 comments:

  1. एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है. वही मुस्लिम समाज पर लागू होती है. करता कोई है और बदनाम पूरी कौम होती है. अच्छा तथ्यात्मक आलेख. आभार !!

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  2. कार्य का सम्बन्ध कौम से नहीं होता है।
    हर कौम में अच्छे और बुरे लोग होते
    ही हैं। मानव स्वभाव ही कुछ ऐसा है।
    इसे बदल पाना भी सम्भव नहीं है।
    सुन्दर प्रस्तुति।

    आनन्द विश्वास.

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  3. सच कहा आपने,, दुर्भाग्य से देश का राजनैतिक तंत्र अपने स्वार्थों के दायरे से बाहर नहीं निकल पा रहा है,, ये सब इसी का परिणाम है...

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  4. हर आतंकवादी एक ही मज़हब से होना भी सवाल खड़े करता है, लेकिन ये भी सही है की एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है.

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  5. मुस्लिम समाज अपनी अशिक्षा के लिए खुद दोषी है. शिक्षा देने के बदले उनके अभिभावक बच्चों को बचपन में ही जीविका में धकेल देते हैं. जो शिक्षा मिलती वह सिर्फ धार्मिक शिक्षा ही होती है.उससे आगे जाना वे खुद ही पसंद नहीं करते हैं.राजनितिक दल मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते हैं. सेकुलर राजनितिक दल इसलिए भी मुस्लिमों को आधुनिक शिक्षा के पक्षधर नहीं हैं ताकि उनका वोट बैंक बन रहे.अगर मुस्लिम आधुनिक शिक्षा प्राप्त करते हैं तो वे राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ जायेंगे जो कथित सेकुलर दलों के अस्तित्व के लिए घातक साबित भी हो सकता है.

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