सारे आरोप स्वीकार हैं पर किया क्या जा सकता है ?? ये अपराधी तो १ महीना जेल में भी रह लेंगे तो भी उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है हमको पुलिस स्टेशन तक भी जाना पड़ गया तो भी छवि भी जायेगी और नौकरी पर भी संकट आ जायेगा
बहुत ही दुखद स्थिति है। लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/ अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
बहुत सार्थक बातें लिखी हैं और सही प्रश्न उठाया है आपने अपने लेख में .... स्थिति दुखद एवं चिंतनीय है शुक्ला जी ...... आज लोगों की संवेदना मर चुकी है शायद ....खून सफ़ेद हो गया है , गर्मी नहीं रही अन्यथा भरी बस में इतने लोगों में से एक-दो लोग भी उन बच्चियों की मदद के लिए उठ न खड़े होते ?
शुक्ला जी बहुत ही सार्थक एवं विचारणीय आलेख है आपके सराहनीय प्रयास के लिए कोटि कोटि अभिनन्दन ....समाज का पतन किस ओर उन्मुख है ..जिस तरीके से ये घटना बदती जा रही हैं माँ बहनों का सुरक्षित समाज में निकलना कितना दूभर होता जायेगा ....अपराधियों को कठोर दंड देने का प्राविधान होता ओर राजनीति का घृणित खेल न हो तो सामान्य नागरिक भी इस समस्या के समाधान के लिए ऐसे मनचलों के विरुद्ध खड़ा होने का साहस जुटा पाते ..उन्हें डर होता है की कानून के पचड़े में फंसने से ओर पुलिसिया कार्यवाही में क्या क्या दिन नहीं देखने पड़ेंगे .....इसलिए आम आदमी भी कायर हो गया है.....बहुत ही दुखद सोचनीय स्तिथि है ये .... सादर !!!
sadar namskaar ........ lekh me bahut hi sarthak baten kahi gayi hain.... agar ise sabhi samjh rahe to kuchh sambhavna badh sakti hai parivartan ki ,.......
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 01-08-2011 को चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर सोमवासरीय चर्चा में भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteआप अपने ब्लॉग से शब्द पुष्टिकरण हटा दें जिससे टिप्पणी करने में आसानी हो
घोर स्वार्थ का परिचायक है यह कायरता ।
ReplyDeleteबहुत ही दुखद स्थिति है।
ReplyDeleteचंद्रभूषण मिश्र जी ,
ReplyDeleteविजय माथुर जी ,
मनोज जी
आप मित्रों और शुभचिंतकों का स्नेह और समर्थन मिला ,आभारी हूँ ,धन्यवाद
सारे आरोप स्वीकार हैं पर किया क्या जा सकता है ?? ये अपराधी तो १ महीना जेल में भी रह लेंगे तो भी उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है हमको पुलिस स्टेशन तक भी जाना पड़ गया तो भी छवि भी जायेगी और नौकरी पर भी संकट आ जायेगा
ReplyDeleteदिल्ली ही नहीं पुरुष मात्र ही नपुंसक होगया है आज देश भर में सब अपने खाने=कमाने में लगे हैं ....
ReplyDeleteबहुत ही दुखद स्थिति है।
ReplyDeleteलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
बहुत सार्थक बातें लिखी हैं और सही प्रश्न उठाया है आपने अपने लेख में ....
ReplyDeleteस्थिति दुखद एवं चिंतनीय है शुक्ला जी ......
आज लोगों की संवेदना मर चुकी है शायद ....खून सफ़ेद हो गया है , गर्मी नहीं रही अन्यथा भरी बस में इतने लोगों में से एक-दो लोग भी उन बच्चियों की मदद के लिए उठ न खड़े होते ?
अंकित जी ,
ReplyDeleteश्याम गुप्ता जी ,
विद्या जी,
सुरेन्द्र सिंह "झंझट '' जी
आप शुभचिंतकों के स्नेह और समर्थन का आभार, मेरे प्रयास को सराहने के लिए धन्यवाद
शुक्ला जी बहुत ही सार्थक एवं विचारणीय आलेख है आपके सराहनीय प्रयास के लिए कोटि कोटि अभिनन्दन ....समाज का पतन किस ओर उन्मुख है ..जिस तरीके से ये घटना बदती जा रही हैं माँ बहनों का सुरक्षित समाज में निकलना कितना दूभर होता जायेगा ....अपराधियों को कठोर दंड देने का प्राविधान होता ओर राजनीति का घृणित खेल न हो तो सामान्य नागरिक भी इस समस्या के समाधान के लिए ऐसे मनचलों के विरुद्ध खड़ा होने का साहस जुटा पाते ..उन्हें डर होता है की कानून के पचड़े में फंसने से ओर पुलिसिया कार्यवाही में
ReplyDeleteक्या क्या दिन नहीं देखने पड़ेंगे .....इसलिए आम आदमी भी
कायर हो गया है.....बहुत ही दुखद सोचनीय स्तिथि है ये ....
सादर !!!
Dimari ji
ReplyDeletethanks for your comment and appriciation.
sadar namskaar ........ lekh me bahut hi sarthak baten kahi gayi hain.... agar ise sabhi samjh rahe to kuchh sambhavna badh sakti hai parivartan ki ,.......
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