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Wednesday 23 October 2013

भाजपा या कांग्रेस ?

                                   भाजपा या कांग्रेस ?

      बस दो महीने की प्रतीक्षा और पांच राज्योंके विधानसभा चुनाव परिणाम स्पष्ट कर देंगे कि केंद्र की अगली सरकार किस दल के नेतृत्व में गठित होगी। तीसरा,चौथा या पांचवां कोई भी मोर्चा क्यों न दावा कर रहा हो कि अगली सरकार उसी की बनेगी, लेकिन उनके लिए यह अभी बहुत दूर की कौड़ी है। केंद्र में सरकार भाजपा या कांग्रेस के नेतृत्व में ही पदारूढ़ होगी क्योंकि तीसरे या चौथे मोर्चे की वकालत कर रहे राजनैतिक दलों में से कोई भी दल ऐसा नहीं है जिसका अस्तित्व राष्ट्रीयस्तर पर हो। सवाल यह भी है कि जिस दल का राष्ट्रीय स्तर पर  कोई प्रभाव नहीं है, अन्य क्षेत्रीय दल उसका नेतृत्व स्वीकार करने को क्यों राजी होंगे ?
       लोग तर्क दे सकते हैं कि वीपी सिंह, देवगौड़ा, गुजराल या चंद्रशेखर की सरकारें भी तो केंद्र में पदारूढ़ रह चुकी हैं, वे सरकारें तो भाजपा या कांग्रेस के नेतृत्व में नहीं गठित हुयी थीं ? जवाब यह है कि वे सरकारें भी तभी बन सकीं और तभी तक अपना अस्तित्व बनाए रख सकीं, जब तक कि भाजपा या कांग्रेस में से किसी एक दल का सहयोग या समर्थन उन्हें हासिल था। यह अलग बात है कि कभी भाजपा केंद्र में महज दो सांसदों की ताकत  लेकर ही पहुँच पायी थी और कभी कांग्रेस का उत्तर  भारत से सूपड़ा ही साफ़ हो गया था, लेकिन फिर भीआज का सच यही है कि जनाधार, लोकप्रियता और विस्तार के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति केवल दो ही दलों भाजपा और कांग्रेस के आस-पास ही घूमती है   
        वर्ष २०१४ में देश के लिए आम चुनाव होने हैं, लेकिन उसके भी पहले पाँच राज्यों दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के चुनाव अगले दो माह के भीतर ही संपन्न होने जा रहे हैं। मिजोरम अपेक्षाकृत छोटा राज्य है और वहां होने वाला कोई भी राजनैतिक परिवर्तन केंद्र की राजनीति पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं डालता।दिल्ली,राजस्थान,  मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की राजनैतिक उथल-पुथल केंद्र को निश्चित रूप से प्रभावित करेगी, इसलिए इन राज्यों के सम्पन्न होने जा रहे विधानसभा चुनावों को यदि वर्ष २०१४ के आम चुनावों का सेमीफाइनल मान लिया जाय तो गलत नहीं होगा।इन चार राज्यों में से दो इस समय भाजपा के कब्जे में हैं और दो कांग्रेस के। विधानसभा चुनावों में उथल-पुथल की संभावनाओं  से इनकार नहीं किया जा सकता, तो यह भी तय माना जा रहा है कि उपरोक्त चार राज्यों में से तीन पर जो भी बढ़त हासिल करेगा , केंद्र की अगली सरकार उसी दल के नेतृत्व में गठित होगी। 
          राजनीति में दोस्ती या दुश्मनी कुछ भी स्थायी नहीं होती तो कोई भी राजनैतिक निर्णय भी अंतिम नहीं होता।  चूंकि केंद्र में कांग्रेस सत्तारूढ़ है इसलिए सत्तारूढ़ गठबंधन के दल ही नहीं बाहर से समर्थन देने वाले भी कई दल अपने राजनैतिक हितों की पूर्ति होने तक ही कांग्रेस के साथ हैं।  यदि आम चुनाव में कांग्रेस लड़खड़ाती है तो आज के उसके सहयोगी दलों में से शायद ही कोई उसके साथ टिका रह सकेगा। भगदड़ तो उपरोक्त पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद ही प्रारम्भ होना तय है। भाजपा या कांग्रेस जिसका भी ग्राफ नीचे जाएगा उसके मित्र उसे टा-टा कहने में देर नहीं लगायेंगे और जिसका भी ग्राफ बढेगा उसके सहयोगियों की संख्या अनायास ही बढ़ जायेगी। 
          पाँच राज्य,६३० विधानसभा सीटें और ११ करोड़ ६० लाख मतदाता। ७० सीटों वाला राज्य दिल्ली सबसे महत्वपूर्ण है तो यहाँ की शीला सरकार के खिलाफ असंतोष भी मुखरित हो रहा है। भाजपा अपनी बढ़त के प्रति आश्वस्त तो है लेकिन इस बार सबसे बड़ी समस्या अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को माना जा रहा है। भाजपाई भी स्वीकार करते हैं कि आप के प्रत्याशियों के मैदान में होने से कांग्रेस का अगर बड़ा नुकसान होगा तो भाजपा के वोटों पर भी निश्चित रूप से प्रभाव पडेगा। यद्यपि  में भाजपा के पास २३ तो कांग्रेस के पास ४३ सीटें हैं, लेकिन भ्रष्टाचार और महगाई से आजिज राज्य के मतदाता कौन सी करवट लेंगे, कहना आसान नहीं है।
     राजस्थान की २०० विधानसभा सीटों में से पिछले चुनाव में ९६ पर विजय का परचम लहराकर कांग्रेस ने भाजपा के हाथों से सत्ता छीन ली थी। तब से अब तक ढेरों पानी बह चुका है।  यूं भी राजस्थान हर पाँच वर्ष पर प्रायः सत्ता परिवर्तन के लिए जाना जाता है, फिर भाजपा को ७८ से १०० सीटों का आंकड़ा पार करना शायद बहुत मुश्किल नहीं होगा।  गहलोत सरकार लचर क़ानून व्यवस्था,भ्रष्टाचार और हालिया अपने ही मंत्री पर लगे यौन शोषण के आरोपों के कारण आक्रामक मुद्रा में कम, बचाव की मुद्रा में अधिक है। यहाँ भाजपा अपनी सुनिश्चित विजय मान रही है , लेकिन अंतिम फैसला तो राज्य के मतदाताओं को ही करना है।
       मध्य प्रदेश की कुल २३० सीटों में से भाजपा १४३ के साथ सत्ता पर काबिज है तो कांग्रेस ७१ सीटों के साथ विपक्ष में है। भाजपा का मानना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कार्यशैली और मोदीवाद के उभार के चलते भाजपा फिर सत्ता पर काबिज होगी, लेकिन इस राज्य में भाजपा के मंसूबों पर पानी फेरने के लिए कांग्रेस अपनी पूरी ताकत लगा रही है। ग्वालियर के युवराज ज्योतिरादित्य सिंधिया को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत कर कांग्रेस युवाओं को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है।  मध्य प्रदेश भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।  यद्यपि अभी तक दोनों ही दल अपने प्रत्याशियों का भी पूर्णरूप से चयन नहीं कर सके हैं , लेकिन राजनैतिक समीक्षक मानते हैं कि इस बार मुकाबला कांटे का है।
        छत्तीसगढ़ की ९० सीटों में से भाजपा ५० पर काबिज और सत्तारूढ़ है।  कांग्रेस ३८ सीटों के साथ विपक्ष में है तो माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश के माहौल का प्रभाव छत्तीसगढ़ में भी पड़ेगा क्योंकि यह राज्य मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद ही अस्तित्व में आया है।
        इन चुनावों में मोदी की लोकप्रियता की भी परिक्षा होना तय है। यदि मतदाता भ्रष्टाचार और महगाई के खिलाफ वोट देते हैं तो कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ना तय है और यदि वे साम्प्रदायिकता के खिलाफ जाते हैं, मोदी की आक्रामक हिन्दूवाद के विरोध में मतदान करते हैं तो भाजपा की राह भी आसान नहीं होगी। अब यह तो देश के मतदाता ही तय करेंगे कि वे देश की बागडोर किसके हाथों में सौंपना चाहते हैं, भाजपा या कांग्रेस ?
                                                      - एस. एन. शुक्ल 

2 comments:

  1. आपके विश्लेषण से सहमत हूँ। फ़िलहाल तो मोदी भाजपा को जीत की ओर ले जाते दिखाई देते हैं।

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  2. आप की बात सच हो जाए , इस समय परिवर्तन बहुत आवश्यक है

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