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Monday 25 June 2012

राजनीति से मुक्त हो राष्ट्रपति पद

 राष्ट्रपति जैसे  महत्वपूर्ण और गरिमामय पद के निर्वाचन में यदि सियासती तिकड़मबाजी और दांव- पेंच का खेल होने लगता है तो यह राजनेताओं ही नहीं सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए शर्मिन्दगी का विषय है / संवैधानिक व्याख्या के अनुसार राष्ट्रपति पद , राजनैतिक निष्ठाओं से पूरी तरह परे है , इसलिए बेहतर यही होगा कि इस गरिमामय पद को ही राजनीति से मुक्त किया जाय और राष्ट्रपति को निर्वाचित करने का अधिकार आम भारतीय मतदाता को दिया जाय /

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद , सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन और डॉ जाकिर हुसैन को छोड़कर उनके बाद के प्रायः हर राष्ट्रपति का निर्वाचन सत्तापक्ष और विपक्ष के द्वंद्व का शिकार हुआ तो यह भी देखा गया कि वे निर्णयों के मामले में भी पूरी तरह निष्पक्ष नहीं रह पाए / राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सत्ताकाल में राष्ट्रपति निर्वाचित हुए डॉ ए .पी. जे . अब्दुल कलाम , राधाकृषण के बाद दूसरे गैर राजनैतिक व्यक्ति थे तो उनका  भी पूरी तरह गैरविवादित रहा , और यह भी एक सच्चाई है कि पदमुक्त होने के बाद भी सारे देश में उनकी जो लोकप्रियता और  प्रतिष्ठा बरकरार है ,   उनके पूर्ववर्ती किसी अन्य निवर्तमान राष्ट्रपति को प्राप्त नहीं हुयी / डॉ . कलाम किन परिश्थितियों और किन विशिष्टताओं के कारण राष्ट्रपति चुने गए , यह अलग विषय है , लेकिन यह प्रयोग इतना  रहा कि अब आम आदमी भी कहने लगा है कि राष्ट्रपति तो गैर राजनैतिक व्यक्ति ही होना चाहिए / यह इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि जिस दिन देश के तेरहवें राष्ट्रपति के लिए कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी को उम्मीदवार घोषित किया तो प्रणब ने राष्ट्र के बजाय अपनी पार्टी और पार्टी अध्यक्ष के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की , अर्थात खुद ही उन्होंने अपने निष्पक्ष रहने के प्रति आम जन के मन में आशंका पैदा कर दी /
    राष्ट्रपति पद का पिछला निर्वाचन जिसमें प्रतिभा देवी सिंह पाटिल निर्वाचित हुईं , सबसे विवाद पूर्ण रहा / तब उनके विगत जीवन के कई किस्से सार्वजनिक हुए , जिनमें भ्रष्टाचार और हेराफेरी की कहानियां भी थीं , लेकिन चूंकि वह सत्तापक्ष की प्रत्याशी थीं इसलिए आरोपों की बाधाओं के बावजूद वह निर्वाचित हुईं तो आरोपों को भी गहरे दफ़न कर दिया गया / उनके क्रियाकलापों और राष्ट्रपति के रूप में उनके द्वारा लिए गए निर्णयों पर फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं , लेकिन क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि जो व्यक्ति सारा जीवन किसी दल विशेष की नीतियों और सिद्धांतों के प्रति निष्ठावान रहा हो , जो अपने दल के बचाव में उचित - अनुचित तर्क देता रहा हो , वह सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचकर उस दल के प्रति निष्ठा से मुक्त हो जाएगा ?
     देश के सर्वोच्च पद के लिए प्रत्याशी बनाने,फिर समर्थन और  बनाने में जिन राजनेताओं और राजनैतिक दलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही होती है , उनके प्रति राष्ट्रपति के मन में कृतज्ञता की भावना पैदा हो जाना स्वाभाविक है / उनसे सम्बंधित गंभीर मसाले जब राष्ट्रपति के सामने निर्णय के लिए आते हैं तो क्या निष्पक्ष रह पायेगा राष्ट्रपति ?भारत का राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च  न्यायाधिपति भी होता है / उसे मृत्यु दंड प्राप्त अपराधी तक को क्षमा कर देने का अधिकार प्राप्त होता है / पूर्व में कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जब राजनैतिक दबावों की विवशता में जघन्य हत्यारे तक राष्ट्रपति की वैधानिक शक्तियों से क्षमा प्राप्त करने में सफल रहे / यदि उस समय इस गरिमामय पद पर कोई गैरराजनैतिक व्यक्ति बैठा होता तो शायद जघन्य अपराधियों का क्षमा प्राप्त करना इतना आसान नहीं होता /
     कहा जाता है कि भारत के राष्ट्रपति का पद स्वर्णिम शून्य है , लेकिन यह पूरी तरह सच भी नहीं है / आपात स्थितियों में वह असीम शक्तियों का स्वामी होता है / संविधान में पूर्व में हुए शंसोधन के बाद अब निर्वाचित राज्य सरकारों को अपदस्थ करना बहुत आसान नहीं रह गया है लेकिन 80 के दशक तक सत्तारूढ़ दल के  पर राष्ट्रपति द्वारा विपक्ष शासित राज्य सरकारों को कभी एक  सी त्रुटी पर और कभी  अनर्गल आरोपों में बेदखल करने का खेल खूब खेला गया /विपक्ष के तीखे विरोध के बावजूद लोकसभा और  राज्यसभा में बहुमत की दशा में सत्तारूढ़ दलों ने तत्कालीन राष्ट्रपतियों से मनचाहे बिलों पर हस्ताक्षर करवाकर खूब मनमानी की / अब तक के कुल 12 राष्ट्रपतियों में से डॉ . राधाकृष्णन और डॉ. कलाम दो लोग ही गैर राजनैतिक थे और सारा देश मानता है कि जितनी लोकप्रियता उक्त दोनों राष्ट्रपतियों को मिली उतनी किसी अन्य को नहीं / 
         प्रश्न योग्यता का नहीं है / प्रश्न सम्मान का भी नहीं है / डॉ .राजेन्द्र प्रसाद , आर . वेंकटरमण और के . आर. नारायणन जैसे लोग राजनैतिक प्रष्ठभूमि से होने के बावजूद सभी दलों द्वारा सामान रूप से सम्मानित थे क्योंकि सर्वोच्च पद पर आसीन होते ही उनहोंने दलीय  को तिलांजलि दे दी थी / यह कहना भी उचित नहीं होगा कि राजनैतिक  व्यक्ति राष्ट्रपति बनाकर पक्षपातपूर्ण निर्णय ही करेगा , लेकिन जैसी गठबंधन सरकारों का दौर इन दिनों चल रहा है उसे देखते हुए राष्ट्रहित इसी में है कि राष्ट्रपति पद पर किसी गैरराजनैतिक व्यक्ति को बिठाए जाने की परम्परा डाली जाय , और यदि आवश्यक हो तो इसके लिए संविधान में उपयुक्त प्राविधान किया जाय /
    हम अमेरिका की राष्ट्रपति निर्वाचन प्रणाली से सीख क्यों नहीं लेते , जहां सारा राष्ट्र राष्ट्रपति चुनाव में भागीदारी निभाता है और राष्ट्रपति अपने राष्ट्र के प्रति सर्वाधिक निष्ठावान होता है / वह सीनेट के निर्वाचित सदस्यों के बजाय क्षेत्र विशेष की प्रतिभाओं का अपने मंत्रिमंडल के लिए चयन करता है / यही वजह है कि जनसंख्या में भारत के सामने नगण्य सा अमेरिका विश्व शक्ति बना हुआ है और हम उसके सामने बौने हैं /आज के जैसे राजनैतिक हालात हैं , उनमें राजनैतिक प्रष्ठभूमि से आये किसी राष्ट्रपति का पूरी तरह से गैर राजनैतिक बने रह पाना यदि  असंभव नहीं तो  मुश्किल अवश्य है / गठबंधन सरकारों के दौर और राजनैतिक अनिश्चितताओं के  माहौल ने राष्ट्रपति भवन में अपने मनमाफिक व्यक्ति को बैठाने की राजनैतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा  कर दी है / नयी सरकार के गठन के समय राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत के  नेता को प्रधानमंत्री पद की शपथ शपथ लेने के लिए आमंत्रित करता है / तब यह उसके  पर निर्भर करता है कि वह सबसे बड़े दल के नेता को बुलाये या सबसे बड़े गठबंधन के नेता को / यही कारण है कि गठबंधन सरकारों की मजबूरियां और क्षेत्रीय दलों की महत्वाकांक्षाएं राष्ट्रप्रमुख जैसे गरिमामय और सर्वोच्च पद को द्वंद्व का शिकार बना रही है /
    जनता के बीच भी छोटा ही सही , राजनैतिक पद हासिल करने की लालसा जिस तरह बढ़ने लगी है , उससे कहीं अधिक राजनेताओं के प्रति वितृष्णा  भी बड़ी है / इसका कारण राजनेताओं और राजनैतिक दलों का दिनों दिन पतित होता चरित्र ही है /  लोगों का मानना है कि जिस तरह भारत का राजनैतिक चरित्र पतित होता जा रहा है , उससे विश्व समुदाय के बीच भारत की छवि धूमिल हुयी   है / राष्ट्रपति देश का संवैधानिक मुखिया होता है , उसे आये दिन दूसरे देशों की यात्रा भी करनी पड़ती है / यदि उक्त पद पर राजनैतिक व्यक्ति ही बैठा होगा तो उसे संदेह की दृष्टि से देखा जाएगा और उसे वह सम्मान तथा विश्वसनीयता हासिल नहीं हो पायेगी जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष को मिलनी चाहिए / यह आशंका निर्मूल भी नहीं है , क्योंकि राजनेताओं ने अपने आचरण के कारण ही अपनी छवि खराब की है / यदि राष्ट्रपति पद को गैर राजनैतिक क्षेत्र के लिए आरक्षित कर दिया जाय और उसका निर्वाचन आम भारतीय मतदाताओं के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप में कराया जाना सुनिश्चित किया जाय तो यह राष्ट्र के भी हित में होगा और वैश्विक विश्वसनीयता के लिए भी / जरूरी है कि सभी दल इस मुद्दे पर आम सहमति बनाएं /
            
                                                  - एस . एन . शुक्ल 


15 comments:

  1. राजनीति का खेल ही निराला है .. आम जन की समझ में बहुत देर बाद फिट होता है तब तक खेल खत्म हो चूका होता है ..
    सटीक सामयिक आलेख ..

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  2. aअसल मे किसी भी पार्टी का लक्ष्य देश हित नही है इस लिये देश का कोई भी मसला हल नही हो सकता। शुभकामनायें।

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  3. आज हमारे देश की शासन व्यवस्था,राजनीति ऐसी महिला पर केंद्रित हो गया है.जो न केवल विदेशी मूल की है उसे न भारतीय संकृति का कोई ज्ञान है और न देश की किसी भाषा का.साथ ही ये महिला विवादास्पद भी है.फिर भी उसे इतना महत्व मिला है.ये अपनी पसंद का राष्ट्रपति,प्रधानमन्त्री ,उपराष्ट्रपति देश पर थोपने में भी इस समय सक्षम है.समझ में नहीं आता कि ये देश के भविष्य के लिए कितना खतरनाक बात है ?

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  4. बढ़िया आलेख !
    बहुत बहुत आभार ...

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  5. जब सारी व्यवस्था ही गडबड है तो राष्ट्रपति चुनाव ही कैसे सही हो । आपका लेख सामयिक और सटीक है । काश, हमारे राजनेताओं का विवेक जाग जाये ।

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  6. तर्क संगत सुन्दर सामयिक आलेख

    सादर!!

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  7. behtarin lekh ...ise padhkar kaphi jaankaari mili aur ye bhi pata chala ki president ke post ko kis tarah khatra hai ...

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  8. बहुत बढ़िया सुन्दर सामयिक आलेख!
    आभार!!

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  9. बेहद यथार्थ परक आलेख ..जनतांत्रिक प्रणाली में राष्ट्रपति पद की गारिमा बनाये रखना अति आवश्यक है.....आभार शुभ कामनाएं !!!

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