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Tuesday 22 May 2012

माफिया तंत्र की मजबूत गिरफ्त

 पैसा है तो माफिया की नज़रों से कैसे बचा रह सकता है / सरकार और प्रशासन में सबसे अधिक पैसा , सबसे अधिक योजनायें तो वहां सबसे अधिक माफियाओं की भी सक्रियता है / वे सरकार बनवाने , सरकार गिराने तक की ताकत रखते हैं , इसलिए अब सियासी दल ही उन्हें पाल रहे हैं / भ्रष्टाचार की मूल वजह भी यही है , फिर आसान तो नहीं है इनके चंगुल से देश को मुक्त कराना /
      माफिया का अर्थ असलहों और बाहुबलियों  से लैस दबंग होना ही नहीं है / भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में माफिया बनाने के लिए यह सारा तामझाम होना ज़रूरी भी नहीं है / यहाँ कमाई के बहुत सारे क्षेत्र हैं / बाहुबली अपनी ताकत के बल पर प्रभावी हैं , तो तिकड़मी अपनी तिकड़म के बल पर / वे राजनेताओं , प्रशासनिक अफसरों के लिए जुगाड़ और कमाई के रास्ते हैं , इसलिए पिछले महज तीन दशकों के अन्दर लगभग सारे देश में राजनेताओं , नौकरशाहों और माफियाओं का ऐसा गठजोड़ तैयार हो चुका है जो सारे देश को आक्टोपस की
 तरह चारों और से जकडे हुए है / वे देश के हर क्षेत्र को निचोड़ रहे हैं / जनता इनसे निजात पाने , इनके चंगुल से व्यवस्था को मुक्त कराने के लिए सरकारों पर सरकारें बदलती रही , लेकिन वे हर बार और बड़ी ताकत बनाते गए  / अब तो हालत यह हो चुकी है कि वे माननीय   जनप्रतिनिधि हैं , विधायक हैं , सांसद हैं , मंत्री हैं और  मुख्यमंत्री पदों  तक पर आसीन हो चुके हैं / सरकारें उनके हितों का पोषण करने वाले  निर्धारित करने के लिए मज़बूर हैं / इस काकश को तोड़ पाना असंभव तो नहीं लेकिन बहुत आसान भी नहीं है / महज सत्ता भर बदल देने से इनसे निजात भी नहीं पायी जा सकती /
     सवाल यह है की यदि व्यवस्था में सुधार और माफिया काकश से निजात आसान नहीं है तो क्या
 शुतुरमुर्ग की तरह तूफ़ान के भय से बालू में सर छिपाकर आँखें बंद कर लेनी चाहिए ? मैंने असंभव नहीं कहा है , मैंने कहा है कि ऐसा कर पाना आसान नहीं है , कारण यह कि देश के व्यवस्था तंत्र की इच्छाशक्ति  समाप्त हो गयी है / अभी बीते वर्ष ही ख्यात फिल्म अभिनेता अनुपम खेर के खिलाफ मामला दर्ज हो गया ,  क्योंकि उनहोंने कहा था कि " भारत का संविधान पुराना हो चुका , उसे फेक देना चाहिए / "
      यही बात यदि खेर ने थोड़ा शब्दों के हेर - फेर के साथ कही  होती , तो शायद यह नौबत नहीं आती / जो लोग  सविंधान बदलने की मांग करते आ रहे हैं , उनका आशय क्या अनुपम खेर की बातों से इतर है ? यदि उन पर संवैधानिक अवमानना का मामला नहीं बन सकता तो अनुपम खेर पर क्यों ? लेकिन यह बात शायद देश भर में कोई नहीं कहना चाहेगा / यहाँ तर्क की गुंजाइश नहीं है , तर्क के लिए अदालतें हैं / सरकार और प्रशासन में भावनाएं और संवेदनाएं नहीं हैं / वे शब्दों को तोलते हैं , शब्दों के हेर - फेर से अपने और अपनों के हित साधते हैं /  यदि वे भावनाओं को समझ पाते , उनकी क़द्र कर पाते तो शायद अब तक 121 करोड़ की आबादी वाला भारत देश , दुनिया के  देशों का सिरमौर बन चुका होता / 
       अन्ना हजारे के अनशन की चर्चा भी ज़रूरी है क्योंकि उनहोंने भ्रष्टाचार के खिलाफ " जन  लोकपाल " बिल की मांग को लेकर -जंतर  मंतर पर अनशन शुरू किया तो देश भर में उनके समर्थन में लाखों लोग इसे  याज्ञिक कर्म मानकर अपने हाथ से भी हव्य समर्पित करने को उतावले दिखे / ऐसे लोगों कांग्रेस विरोधियों की बहुतायत थी , जिनमें बहुत सारे ऐसे लोग भी शामिल थे जिनके अपने दामन पर भी दाग थे ,
 माफिया तंत्र का ही एक वर्ग इस जनांदोलन की भी अगुवाई करने को उतावला दिखा / वह बाबा रामदेव हों , अरविंद केजरीवाल हों या अन्ना हजारे , उनके पास ऐसा कौन सा मापक है जिसके द्वारा वे अच्छे - बुरे , ईमानदार - भ्रष्ट , सभ्य - माफिया का वर्गीकरण कर गलत लोगों को आगे आने से रोक पायेंगे ? 
      सात अप्रैल 2011 को ऐसे ही , अन्ना समर्थक सैकड़ों लोगों का समूह जुलूश की शक्ल में नारेबाजी करते हुए  रहा रहा था / नारा लग रहा था " अन्ना तुम संघर्ष  करो - हम  तुम्हारे साथ हैं " किन्तु समवेत स्वरों की अस्पष्ट ध्वनि आ रही थी " अन्ना तुम संघर्ष  करो - चोर   तुम्हारे साथ हैं " यदि कुछ चोरों के हाथ से सत्ता छीनकर दूसरे चोरों को सौंप दी जाय तो क्या व्यवस्था बदल जायेगी ? मैं इसीलिये कह रहा हूँ कि व्यवस्था का बदला जाना जरूरी है /
       कभी शिक्षा का पेशा सबसे आदर्श माना जाता था लेकिन आज इस क्षेत्र में शिक्षा माफिया का डंका बज रहा है / सबको स्वास्थय सेवायें उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है , वहां सबसे अधिक भ्रष्टाचार है / बीते पांच वर्षों के दौरान उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तीन - तीन सी एम् ओ की हत्याएं , यह समझना कठिन नहीं है कि ये हत्याएं क्यों हुईं / फर्जी नियुक्तियां, दवा माफियाओं का दबाव , आपूर्ति में हेरा- फेरी और फर्जी भुगतान की खुलतीं परतें ही इन हत्याओं का कारण थे / अभी तक किसी गुनाहगार को उसके अंजाम तक न पहुंचाया जा पाना क्या माफियाओं की ऊंची
पहुँच के कारण ही नहीं है ? वही गुनाहगार, वही जांच अधिकारी और अदालतें भी वही , आप क्या उम्मीद कर सकते हैं ? 
     सरकारी  निर्माण कार्यों में तो और भी जंगल राज है , सबसे अधिक माफियावाद और घटिया निर्माण या फर्जी निर्माणों की कहानियां वहीं हैं / महगाई को ही ले लें , सबको पता है कि जब राहुल गांधी ने महगाई का ठीकरा कृषि मंत्री शरद पवार के सर फोड़ा था तो
 किस तरह डैमेज कंट्रोल किया गया और किस तरह देश पर महगाई का कहर धाकर सरकार बचाई गयी / फर्जी राजा, ए. राजा की कहानी तो सबको पता है जिसके अंजाम दिए गए स्पेक्ट्रम घोटाले से देश को
 एक लाख छिहत्तर हज़ार करोड़ की चपत लगी / एक ताकतवर काकश जिसमें उद्द्यामी , दलाल और कथित पत्रकार भी शामिल थे / राजनैतिक माफिया , उद्दयम जगत के माफिया , अखबारी माफिया , जनसंपर्क संस्थाओं के  पर दलाली के अड्डे चलाने वाले माफिया और अधिकारों , राजनेताओं को रूपजाल में फांसने के लिए देहाजीवाओं का काकश , फिर कैसे  निजात ?
        अफसरों , और माफियाओं का गठजोड़ प्रायः हर क्षेत्र में प्रभावी है और जो ईमानदार हैं वे
मारे जा रहे हैं / नॅशनल हाइवे अथारिटी आफ इंडिया के इंजीनियर सत्येन्द्र नाथ दुबे ( बिहार ) , इंडियन आयल कारपोरेशन के ईमानदार युवा अधिकारी मंजुनाथ खाद्मुगम ( उत्तर प्रदेश ) और
एस दी एम् यशवंत सोनवाने ( महाराष्ट्र ) की हत्याएं इस बात का जीता - जगता सबूत हैं /
       न्यायपालिका में भी शायद ही कुछ कुर्सियां ईमानदारी के साथ न्याय कर पाती हों ,  क्योंकि उनके
भी परिवार हैं , उन्हें भी अपनों की सुरक्षा की चिंता है / शायद इसीलिये आज तक किसी बड़े अपराधी
नेता , नौकरशाह को जघन्य आपराधिक आरोपों के बावजूद सजा नहीं दी जा सकी / लोकतंत्र के चारों
स्तम्भ विधायिका , कार्यपालिका , न्यायपालिका और स्वतंत्र मीडिया तंत्र सब जगह माफिया
 सक्रिय सक्रीय हैं / सब मिलकर खेल रहे हैं / अधिकारी ईमानदार नहीं रह सकते / ऊंची पढाई , कठिन
प्रतियोगी परीक्षाएं पार कर हासिल की गयी सरकारी नौकरी हर कोई ईमानदारी के नाम पर कुर्बान नहीं
कर सकता और हर कोई टी . एन . शेषण , किरण बेदी , शैलेन्द्र सिंह नहीं बन सकता ,
 इसलिए हाल- फिलहाल   माफियावाद का सफाया होता भी नहीं दिख रहा है / सच यह है कि जब तक इस माफियावाद पर विराम नहीं लगता , तब तक तो व्यवस्था में भ्रष्टाचार कायम ही रहेगा /

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