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Saturday 8 October 2011


24 comments:

  1. आप ठीक कह रहे हैं आज गांधी जी को एक फैशन-ब्रांड के रूप मे लिया जा रहा है,उनकी नैतिकता को पाखंड समझा जाता है और उनका नाम कैश किया जाता है।

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  2. आपके विचारों से मैं तो पूर्णरूपेण सहमत हूँ. आभार जनता के बीच इस सोच को ले जाने के लिये.

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  3. बहुत ही सशक्त आलेख ..सही कहा न्याय व्यवस्था पंगु है और जिसकी लाठी उसकी भेंस साबित हो रही है आज की प्रणालिका

    http://eksacchai.blogspot.com

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  4. बेहतरीन आवश्यक अभिव्यक्ति ....
    आभार आपका !

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  5. आदरणीय श्रीशुक्लाजी,

    आपने सही समय पर सही आलेख प्रस्तुत किया है । आपको बहुत बधाई ।

    मुझे तो हैरानी हो रही है कि, प्रशांत भूषणजीने कश्मीर इस्यू पर अपनी राय सार्वजनिक करने से पहले, उन कश्मीरी पंडितो का दर्द और आजतक वहाँ शहीद हुए हमारे जाँबाज़ जवानों के बलिदान की भी परवाह क्यों नहीं कि? क्या वह सब इन्सान कि गिनती में नहीं ?

    श्रीअण्णाजी के प्लेटफोर्म से मिली प्रसिद्धि के नशे में, ये सब अपनी मर्यादा लांघ रहे हैं । इन में और परविन बाबी के प्यार को, चोरी की घटिया फिल्में बनाकर पैसे चट्ट करनेवाले निर्माता-निर्देशक के व्यक्तित्व में शायद कोई अंतर नहीं है..!!

    मार्कण्ड दवे ।
    http://mktvfilms.blogspot.com

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  6. kaas aise chintako ke taadaat aaj ke netaou se jyade hoti
    ek o(gandhi ji)bhee neta the
    ek aaj bhee neta hai
    shabd ek hai per soch ekdum alag
    aacha chintan hai sir ji

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  7. आम आदमी अपने प्रतिरोध की अभिव्यक्ति के लिए इसी हथियार का ही तो सहारा ले सकता है. इस मायने में रह - रह कर गाँधी याद कर ही लिए जाते हैं.

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  8. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त आलेख ! शानदार प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ,आभार । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  10. आपने बहुत जरुरी सवाल उठाया है ! देखिये यह विचारधारा तो है ....रहेगी ... आप इस्तेमाल करें या न करें .....इसकी शाखाएं फूटती रहेंगी ...और आकर्षित करती रहेंगी ! ये गाँधी की विवशता नही थी , यह भारतीय संस्कृति का प्राण है ...जीवन है ....साँस देता रहेगा ! आपको मेरी कविता पसंद आई ..बहुत बहुत धन्यवाद !

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  11. आदरणीय षुक्लाजी ,
    नमस्कार,
    वीरा का अनुसरण करने पर आपका आभार व्यक्त करती हूं।साथ ही मैं आपके विचारो से सहमत हू आज के युग में गांधीवादी विचारो की प्रांसगिता है लेकिन लोग इसे सच्चे अर्थ में स्वीकार नही कर पा रहे है।

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  12. बहुत ही सशक्त आलेख ..सही कहा... आपके विचारों से मैं तो पूर्णरूपेण सहमत हूँ. आभार

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  13. बढ़िया लेख ........
    गाँधी की प्रासंगिकता हर उस वक़्त रहेगी जब-जब देश-काल व परिस्थितियां उसे महसूस कराती रहेंगी.......हाँ ये उस आदर्श स्थिति की तरह जरूर है जिस तक न भी पहुँच पायें लेकिन उस तक पहुँचने की कोशिश जरूर की जनि चाहिए

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  14. adarniya shukla sir bahut sundar aalekh...

    samay mile to kabhi mere blog par v aaye taki mujhe bhi ek nai disha mil sake..

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  15. bahut achcha sashaqt,tark sangat lekh ke liye badhaai.

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  16. आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेर नए पोस्ट ' अपनी पीढी को शब्द देना मामूली बात नही" है पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  17. Gandhi ke yogdan par aapne santulit dhang se prakash dala hai. Aapne sahi kaha hai desh ki aazadi mein kewal mahtam gandhi ki bhumika nahi ho sakta, kyonki iska matlab garmdal ke netaon ki bhumika ko kam kar ke aankna hai. Aasha hai isprakar ke lekh hame bhavishya mein padhne ko milte raheinge.

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  18. संतुलित और समसामयिक पोस्ट...
    लगा कि जैसे आम आदमी के विचारों को ही आपने सुन्दर स्वरूप प्रदान किया

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  19. Dear 'journalist' your blog is very nice! Congrats!
    आपने बहुत अच्छा लिखा है ! बधाई! आपको शुभकामनाएं !
    आपका हमारे ब्लॉग http://tv100news4u.blogspot.com/ पर हार्दिक स्वागत है!

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  20. क्या कहें....

    ऊपर बहुत ऊपर बहुत ऊपर मैं उठ सकूं ,
    उठने की चाह में बहुत गिरने को हम तैयार।

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  21. नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
    आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
    मेरी एक नई मेरा बचपन
    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
    http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
    दिनेश पारीक

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  22. अंग्रेज बंदूकों से लडाई में माहिर ही नहीं थे उनके पास सालों- साल तक लड़ने की अंतहीन तैयारी भी थी ... पर बन्दुक के आगे निहत्तों से कैसे लड़ा जाएँ इस बात की उनकी न तो कोई तैयारी थी ... न अनुभव / बस यहीं वे पिछड़ने लगें ... गाँधी जी मानते थे की " अपराध से तो घृणा की जाय पर अपराधी से कदापि नहीं " ... इस बात अमल करते हुए गाँधी जी ने अपनी कथनी और करनी की समानता से अंग्रेजों का हाल बेहाल कर दिया ... वे समझ ही नहीं पाए ... उनकी अजीब ठब की लढाई की करामात का लोहा सदियों तक दुनिया भुला नहीं पायेगी ... गाहे-बगाहे उनकी भूरी-भूरी प्रसंसा आये दिन सुनने में आती ही रहती है ... गाँधी जी ने कभी प्रचार प्रसार को या भीड़ को महत्व नहीं दिया .

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