हम हिन्दुस्तान की संतानें हैं, मात्रभाषा हिन्दी है, लेकिन हिन्दी दिवस और हिन्दी पत्रकारिता दिवस जैसे अवसरों
पर भी क्या हम अपनी मां, अपनी मात्रभाषा को वह सम्मान से पाते हैं/ जिसकी एक सुयोग्य संतान से मां अपेक्षा
करती करती है/ एस सच्चाई से तो शायद ही कोई इंकार करेगा कि भारत में किसी अन्य भाषा की अपेक्षा हिन्दी
भाषा की ग्राह्यता, हिन्दी समाचार पत्रों और पत्रिकायों की प्रसार संख्या अघिक है लेकिन फिर भी विज्ञापनों के
मामलों में चाहें वे सरकारी हों, औध्योगिक अथवा व्यवसायिक हों या व्यक्तिगत उनका कोटा और उनकी दर
न्यून है यह सब तब है जबकि भारत की दो तिहाई जनसंख्या लगभग पुरी तरह हिन्दी पर आश्रित है/ देश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश अपनी खडी बोली, अवधी, बुन्देलखंडी, पांचाली या
भोजपुरी में हिन्दी भाषा का ही प्रयोग केता है तो पड़ोसी राज्य बिहार की मैथिली और भोजपुरी जबाने भी हिन्दी
की ही हैं/ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों की भाषा हिन्दी है तो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश
जैसे पहाडी राज्यों की स्थानीय भाषा भी हिन्दी है/ राजस्थान की भाषा में स्थानीयता का पुट भले ही हो लेकिन
वह भाषा भी हिन्दी ही है/ वहीं हरियाणा राज्य की स्थानीय हरियाणवी भी हिब्दी ही है राष्ट्रीय राजधानी नयी
दिल्ली की भाषा भी हिन्दी है/ वह महाराष्ट्र जहां के कुछ स्थानीय नेताओं ने अपने राजनैतिक स्वार्थों के वशीभूत
होकर हिन्दी भाषियों के विरुद्द अभियान चला रखा है वहाँ की मराठी भी हिन्दी की ही एक उप शाखा है/ गुजरात में
गुजराती भाषा को भी आप हिन्दी की ही शाखा मानने से इंकार नहीं कर सकते/ उर्दू तो हिन्दी में ही रच बस गयी है/ उर्दू के शब्दों का प्रयोग अब हिन्दी में सर्वाधिक होता है, इसलिए अब उर्दू भी भारत की अपनी भाषा है/
एस द्रष्टिकोण से हिन्दी भारत की सर्वाधिक सम्रद्द और स्वीकार्य भाषा है किन्तु दुर्भाग्य यह है कि यदि
देश का कोई जननायक हिन्दी की वकालत करता है तो शाजिश के तहत रसे रुढ़िवादी और पिछड़ी सोच का
ठहराए जाने के कुत्सित प्रयास किये जाने लगते हैं/ यद्द्यपि एस राजनैतिक प्रपंच में नहीं जाना चाहते, लेकिन
पर भी क्या हम अपनी मां, अपनी मात्रभाषा को वह सम्मान से पाते हैं/ जिसकी एक सुयोग्य संतान से मां अपेक्षा
करती करती है/ एस सच्चाई से तो शायद ही कोई इंकार करेगा कि भारत में किसी अन्य भाषा की अपेक्षा हिन्दी
भाषा की ग्राह्यता, हिन्दी समाचार पत्रों और पत्रिकायों की प्रसार संख्या अघिक है लेकिन फिर भी विज्ञापनों के
मामलों में चाहें वे सरकारी हों, औध्योगिक अथवा व्यवसायिक हों या व्यक्तिगत उनका कोटा और उनकी दर
न्यून है यह सब तब है जबकि भारत की दो तिहाई जनसंख्या लगभग पुरी तरह हिन्दी पर आश्रित है/ देश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश अपनी खडी बोली, अवधी, बुन्देलखंडी, पांचाली या
भोजपुरी में हिन्दी भाषा का ही प्रयोग केता है तो पड़ोसी राज्य बिहार की मैथिली और भोजपुरी जबाने भी हिन्दी
की ही हैं/ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों की भाषा हिन्दी है तो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश
जैसे पहाडी राज्यों की स्थानीय भाषा भी हिन्दी है/ राजस्थान की भाषा में स्थानीयता का पुट भले ही हो लेकिन
वह भाषा भी हिन्दी ही है/ वहीं हरियाणा राज्य की स्थानीय हरियाणवी भी हिब्दी ही है राष्ट्रीय राजधानी नयी
दिल्ली की भाषा भी हिन्दी है/ वह महाराष्ट्र जहां के कुछ स्थानीय नेताओं ने अपने राजनैतिक स्वार्थों के वशीभूत
होकर हिन्दी भाषियों के विरुद्द अभियान चला रखा है वहाँ की मराठी भी हिन्दी की ही एक उप शाखा है/ गुजरात में
गुजराती भाषा को भी आप हिन्दी की ही शाखा मानने से इंकार नहीं कर सकते/ उर्दू तो हिन्दी में ही रच बस गयी है/ उर्दू के शब्दों का प्रयोग अब हिन्दी में सर्वाधिक होता है, इसलिए अब उर्दू भी भारत की अपनी भाषा है/
एस द्रष्टिकोण से हिन्दी भारत की सर्वाधिक सम्रद्द और स्वीकार्य भाषा है किन्तु दुर्भाग्य यह है कि यदि
देश का कोई जननायक हिन्दी की वकालत करता है तो शाजिश के तहत रसे रुढ़िवादी और पिछड़ी सोच का
ठहराए जाने के कुत्सित प्रयास किये जाने लगते हैं/ यद्द्यपि एस राजनैतिक प्रपंच में नहीं जाना चाहते, लेकिन
पिछले दिनों समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के दौरान अपने चुनावी घोषणा पत्र में युवाओं
को लैपटॉप देने की घोषणा की थी तो कतिपय विपक्षी नेताओं ने व्यंग्य कसते हुए कहा था कि लगता है कि मुलायम
सिंह ने अंगरेजी सीख ली है/ उल्लालेखानीय है कि मुलायम सिंह यादव हमेशा से ही हिन्दी के प्रबल पक्षधर रहे हैं और अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में उन्होंने हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाए जाने का पूरा प्रयास भी
किया था/ सवाल यह है कि क्या हिन्दी का समर्थन करना और उसे प्रोत्साहित करने का प्रयास करना दकियानूसी
है, अपराध है ?
अंग्रेजी वैश्विक संपर्क की भाषा है, तो क्या उसके लोभ में अपनी भाषा तिरस्कृत कर दी जानी चाहिए ? जब हम अपनी भाषा का तिरस्कार कैरने लगते हैं, तो उसके साथ ही अपनी संस्कृति
ओर अपने संस्कार भी तिरोहित होने लगते हैं और यही एन दिनों हो भी रहा है/ हिन्दी को हेय द्रष्टि से देखने
वाले भारतीय संस्कृति और संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं/ कहा जाता है की यदि किसी देश को नष्ट करना है
तो सबसे पहले उसकी सभ्यता और संस्कारों को नष्ट करो/ तो क्या हम पतन के मार्ग की ओर अग्रसर नहीं
है/ पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुकरण देश की युवा पीढी को कई व्यसनों की ओर धकेल रहा है, तो कहीं उन्हें
सामाजिक और पारिवारिक दायित्यों से विमुख भी कर रहा है/ वे इसे परिवर्तन का नाम से रहें हैं और तर्क देते
हैं की परिवर्तन संस्कृति का साश्वत नियम है, परिवर्तन प्रकृति की साश्वत प्रक्रिया है, उस बात से कौन इंकार
इंकार कर सकता है/ हर वर्ष पतझड़ आता है, पेड़ों के पुराने पत्ते गिरते हैं और उनके स्थान पर नईं कोपलें खिलतीं हैं, फिर नए पत्ते आते हैं, लेकिन पीपल के पेड़ पर बरगद के पत्ते और नीम के पेड़ पर बाबुल की
पत्तियां तो नहीं निकलती हैं/ यह कैसा परिवर्तन है जो कई पीढी को उसकी सभ्यता उसके संस्कारों और उसकी
जड़ों से ही प्रथक कर रहा है/
जड़ों से प्रथक होना स्वविनाश का सूचक है/ माना की युवा पीढ़ी खूब मेहनत कर रही है और सम्रद्धि
की उंचाइयां छु रही है और इस आपाधापी में वह अपनों से तथा अपनी भाषा, अपनी संस्कृति से दूर होती
जा रही है / कल को इस युवा पीढ़ी की अगली पीढ़ी भी तैयार होगी / यदि वह की युवा पीढ़ी से भी चार कदम आगे हुयी, तो क्या होगा ? यह हिन्दी ही है जहां अपनापन है, रिश्तों की मिठास है, सुख-दुःख में भादीगारी है, वात्सक्य है, स्नेह है, मान का आँचल है, ममता की छाव है, रिश्तें नाते भी संश्कार की ओर से बंधे हैं/ पाश्चात्य
सभ्यता और भाषा में ऐसा कुछ भी नहीं है/ वहां रिश्ते भी सुविधा और जरुरत के तहत निभाये जाते हैं/ यदि अपनी भाषा और अपने संस्कार हमें अपनत्व, मानवता और एक दूसरे के सुख-दुःख से जोडतें हैं तो वे
कथित आधुनिकता की द्रष्टि में पिछड़े ही सही लेकिन अति आवस्यक है और वे जो हिन्दी की वकालत करतें हैं,
उसके विस्तार और समृद्धि के लिए प्रयासरत हैं, वे सहज रूप से अपने हैं और उन्हें जन समर्थन मिलना ही
चाहिए/ हिन्दी दो तिहाई भारत की माँ है क्योंकि संपूर्ण राष्ट्र की सो तिहाई जनसंख्या के बीच जन्म लेने वाला
बच्चा जब बोलना प्रारंभ करता है तो वह शब्द हिन्दी का ही होता है/ भारत की अन्य भाषाएँ भी अपनी हैं/ वे
जिन क्षेत्रों में बोली और संची जाती है, वहा के निवासियों की माएं हैं तो हिन्दी भाषियों की मासी हैं/ मासी का
शाब्दिक अर्थ होता है माँ जैसी, इसलिए भारत की अन्य सभी भाषाएँ भी मातृत्व ही स्वीकार है, लेकिन
अंगरेजी भाषा होने के बावजूद भी माँ या माँ जैसी नहीं हो सकती/ उसे सीखना, समझना, जागना जरुरी है
लेकिन मात्रभाषा की उपेक्षा करके नहीं/
30 मई उदन्त मार्तंड अर्थात भारत में हिन्दी के प्रथम समाचार का जन्म दिवस है/ यह हिन्दी
पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है/ एस अवसर पर हम संकल्प लें और हिन्दी के समृद्ध, समर्थ बनाने
के प्रयास की ओर प्रथम पग बढ़ाने की पहल करें, यही सच्ची श्रद्धा और श्रद्धांजलि होगी तथा स्म्रतांजलि भी/ अपनी भाषा की उन्नति में ही अपने उत्कर्ष का विधान है, इसे महाकवि की महज एक पंक्ति ही परिभाषित
कर देती है/ "निज भाषा उन्नत अहै, सब उन्नति कै मूल" तो अब आगे भूल मत करना/...........
सम्पादक
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