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Friday 5 October 2012

गांधीजी के सपनों का भारत और वर्त्तमान लोकतंत्र-3

            बाबा- ए - कौम महात्मा गाँधी 


दुनिया की जिन सख्शियतों ने शोहरत की बुलंदियां हासिल कीं उनमें गांधीजी का नाम सबसे अज़ीम है। उनहोंने सारी ज़िंदगी अहिंसा के नाम कर दी , सारी दुनिया को अहिंसा का उपदेश देते रहे और खुद हिंसा का शिकार होकर शहादत पायी। मालदार परिवार के तीन भाइयों में सबसे छूते होने की वजह से उन्हें परिवार का प्यार और परवरिश दोनों ही अच्छी मिलीं। बचपन माँ की परवरिश में ज्यादा गुजरा जो एक धार्मिक महिला थीं। उनसे सूनी सत्यवादी हरिश्चंद्र और श्रवण कुमार की कहानियों का उन पर गहरा असर हुआ और वह उनके साथ सारी ज़िंदगी रहा।
     जाति से वैश्य होने के बावजूद उनके परिवार का माहौल पूरी तरह सामाजिक था। उनके दादा जूनागढ़ रियासत के दीवान थे इसलिए उनके यहाँ लोगों का आना- जाना ज्यादा था जिनमें हिन्दू और मुसलमान सभी होते थे। इसी माहौल ने उन्हें पूरी तरह धर्म निरपेक्ष बनाने में भारी मदद की। देश में अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह वकालत की तालीम हासिल करने इंग्लॅण्ड गए और वहां से बैरिस्टर बन कर वापस लौटे। वह चाहते  तो उन्हें कोई बड़ा सरकारी ओहदा भी मिल सकता था या वह खुद वकालत कर शोहरत और पैसा कमा सकते थे लेकिन अंग्रेज सरकार की ज्यादती और जुल्म तथा भारत के लोगों की दीन - हीन दशा ने उन्हें द्रवित किया और उन्होंने हिन्दुस्तान को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद कराने का फैसला किया। एक हिन्दू पतिवृता औरत की तरह उनकी धर्मपत्नी कस्तूरबा बाई जिन्हें लोग बा के नाम से जानते थे , ने भी गांधीजी को पूरा सहयोग किया और उनकी ताकत बन गयीं।
     हालांकि उस दौर में अंग्रेजों की मुखालफत शुरू हो चुकी थी लेकिन वह विरोध एकजुट नहीं था जिसका फ़ायदा अंग्रेजों को मिल रहा था और वे उन विरोधों का आसानी से दमन कर देते थे। इसकी वजह यह थी की मुखालफत करनेवालों का कोई नेता नहीं था जो उन्हें संगठित कर सके। इसी बीच जलियानवाला हादसा हो गया जिसमें अंग्रेजों ने हैवानियत की हदें पार करते हुए हजारों लोगों को जिनमें बच्चे, बूढ़े और औरतें भी थीं गोलियों से भून डाला। यह कत्लेआम हिन्दुस्तानियों के दिलों में दहशत पैदा करने के लिये किया गया था। जवानों में इस घटना  के खिलाफ गुस्सा था तो आम आदमी में खौफ भी था।उस घटना ने गांधीजी को नयी सोच दी लेकिन सच के लिए उनका फैसला और पक्का हो गया। वह जानते थे कि निहत्थे हिन्दुस्तानी अंग्रेजों की गोलियों से तभी बचाए जा सकते   वे उनका  अहिंसात्मक विरोध करें, उनकी नीतियों का विरोध करें और यह विरोध सारे मुल्क की आवाज़ बन जाय।
    यह वह दौर था जब अंग्रेज हिन्दुस्तान में फिरकापरस्ती के बीज बो चुके थे और हिन्दुओं- मुसलमानों के बीच नफ़रत की खाई चौड़ी होती जा रही थी। उस वक्त मुल्क को एक ऐसे लीडर, एक ऐसे रहनुमा की जरूरत थी जिस पर सब भरोसा कर सकें और जो सबको साथ लेकर चल सके। यह काम केवल वही आदमी कर सकता था जिसमें लालच न हो, सहन करने की ताकत हो, ईमानदारी हो और लीडर बनाने की काबिलियत भी हो। ये सारी खाशियतें गांधीजी में थीं। वह उच्च शिक्षा प्राप्त बैरिस्टर थे, तर्कों से अपनी बात साबित कर सकते और मनवा सकते थे और सबसे बड़ी सच्चाई की ताकत भी उनके साथ थी। जिसके साथ सच्चाई की ताकत होती है उसके साथ सारी कायनात के मालिक यानी कि खुदाई ताकत मानी जाती है। उसी ताकत की बदौलत बिना हथियारों की लड़ाई लड़े उन्होंने अंग्रेजों पर फतह हासिल की, मुल्क को गुलामी से आज़ाद कराया लेकिन वह अपनों से हार गए।
      उनके ज़ज्बे, उनके त्याग को सारे हिन्दुस्तान ने सलाम किया और उन्हें बाबा-ए - कौम ( राष्ट्रपिता ) के खिताब से नवाजा गया। काश, यह मुल्क उनके बताये रास्ते पर चल पाता , काश उनके ख़्वाबों का हिन्दुस्तान हकीकत में बदल पाता , तो यह मुल्क फिर सारी दुनिया का ताज़ होता। हम सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानी सारी दुनिया के सातवें हिस्से से भी ज्यादा हैं, हमारे पास जेहनियत की भी कमी नहीं है, लेकिन जिन हाथों में आज हिन्दुस्तान की बागडोर है उनकी नीयतें साफ़ नहीं हैं। जम्हूरियत से अच्छी कोई हुकूमत नहीं मानी जाती , लेकिन इन दिनों हिन्दुस्तान में जो जम्हूरियत है उससे तो बेहतर किसी तानाशाह की हुकूमत कही जा सकती है। वहाँ केवल एक ही लुटेरा होता है बादशाह, लेकिन इस मुल्क की हुकूमत में शायद हर कुर्सी लूट के लिए ही बनायी गयी है।बापू नहीं हैं लेकिन यह सब देखकर उनकी रूह को तकलीफ तो होती ही होगी। काश! हम इतना एहसानफरामोश न होते।
          - समीना फिरदौस 

1 comment:

  1. srathak post ,bharat ke durbhaagya ki kahani kahti hae aapki rachna ,

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