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Friday 8 November 2013

ऐश आराम में नपे आशाराम

                                                  ऐश आराम में नपे आशाराम 


      " खबरदार ! आपने यदि शरीर के लिए ऐश- आराम की इच्छा की, विलासिता एवं इन्द्रिय सुखों में अपना समय बर्बाद किया तो आपकी खैर नहीं " 

       ये पंक्तियाँ विश्व प्रसिद्ध लेखक और विचारक स्वेट मार्डन की अनूदित कृति "सफलता के 251 स्वर्णिम सूत्र " जो डी.पाल द्वारा अनूदित और संकलित और मनोज पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित है के पृष्ठ संख्या 151 पर लेखक ने बड़ी श्रृद्धा के साथ मोटे अक्षरों में आशाराम बापू के नाम से संदर्भित की हैं . पर उपदेश कुशल बहुतेरे अर्थात दूसरों को उपदेश देना सरल है लेकिन अपने खुद के जीवन में वैसा ही आचरण करना आसान नहीं है. दूसरों को अपने प्रवचन कार्यक्रमों में आशाराम जो शिक्षा देते रहे उस पर अमल नहीं कर पाए और उन्हीं पर उनका कथन चरितार्थ हो उठा . ऐश-आराम, विलाशिता और इन्द्रिय सुखों में लिप्त हुए और अब वास्तव में उनकी खैर नहीं है .
        बुधवार 6 नवम्बर को जोधपुर पुलिस ने आशाराम और अन्य आरोपियों के खिलाफ 77 दिनों की जांच के बाद 1011 प्रष्टों की चार्जशीट दाखिल की जिसमें 121 दस्तावेजों और 58 गवाहों की सूची के साथ गंभीर आरोप लगाए हैं . आशाराम के खिलाफ आरोपों में आईपीसी की धारा 342 (गलत ढंग से कैद करना), धारा 276(2) (ऍफ़) (नाबालिग से बलात्कार) , 376डी (बलात्कार), 354 ए( महिला का शीलभंग करना ), 506 (डराना-धमकाना) तथा धारा 102 (अपराध के लिए उकसाना) समेत 14 धाराएं लगाई गयी हैं. यदि ये आरोप प्रमाणित होते हैं तो आशाराम को 10 वर्ष से लेकर उम्र कैद तक की सजा हो सकती है. ऐश-आराम की इक्षा की, विलासिता एवं इन्द्रिय सुखों में समय बर्बाद किया तो आपकी खैर नहीं , खुद उनका ही कथन यथार्थ बनाकर आशाराम्के सामने है और बचाव का कोई रास्ता नहीं.
    अभी बात यहीं समाप्त नहीं होती, नए खुलासे, नए आरोप और पुलिस जांचों का घेरा आशाराम के चारों ओर इतना मजबूत होता जा रहा है कि उससे बाहर निकलना अब उनके लिए आसान नहीं रह गया है.उनके अनुयाई और अंध समर्थक यदि उन्हें साजिशन फंसाए जाने के आरोप लगा रहे हैं तो आरोप लगाने वाले भी वे लोग हैं जो वर्षों तक आशाराम के सानिध्य में रह चुके हैं. इसके साथ ही विभिन्न राज्य सरकारों की भृकुटी भी आशाराम के उन आश्रमों के प्रति तनती नज़र आ रही है जो सरकारी अथवा ग्राम समाज की जमीनों पर अवैध कब्जा कर स्थापित किये गए अथवा जिन आश्रमों को लेकर विवाद चल रहे हैं.
      आशाराम के अनुयाई सवाल उठा रहे हैं कि जो लोग अब आरोप लगा रहे हैं और वर्षों पूर्व घटी घटनाओं को आधार बनाकर उनके बापू को दोषी ठहरा रहे हैं, वे अब तक चुप क्यों थे ? और शायद इसका स्वाभाविक जवाब यह है कि जब रोशनी तेज हो तो उससे कोई भी आँखें मिलाने का साहस नहीं कर पाता क्योंकि तब उसे अपनी ही आँखों की रोशनी के लिए खतरे की आशंका उसे ऐसा करने से रोकती है. आशाराम भी जब चमक रहे थे. जब बड़े-बड़े अधिकारी और राजनेता उनके सामने नतमस्तक होते थे तब भला किसकी हिम्मत थी जो उन पर उंगली उठाने का दुस्साहस करता. जब अदालत और क़ानून की आशाराम के साथ सख्ती दिखी और लोगों को न्याय की उम्मीद बंधी तो ज्यादती का शिकार लोग खुलकर सामने आने की हिम्मत जुटाने लगे.
       करीब एक दशक पूर्व लखनऊ के एक आयोजन में आशाराम ने अपने प्रवचन के दौरान यह भी कहा था कि "किसी युवक के लिए वृद्धा विष के सामान है और वृद्ध के लिए तरुणी का सानिध्य अमृत जैसा है" तब यह वाक्य आशाराम के मुंह से भले ही किसी सन्दर्भ में निकला हो लेकिन शायद खुद अपने जीवन में इस वाक्य को आत्मसात कर लिया और अमृत के लोभ में वह कुकर्म करने लगे जो उन्हें लगातार पतन की ओर ले जाता रहा.आशाराम और उनके आश्रमों की गतिविधियाँ करीब एक दशक पहले से ही संदेह के घेरे में थीं . जो वाक्य डी. पाल ने आशाराम के सन्दर्भ से अपनी पुस्तक में बड़ी श्रद्धा से अंकित किया था उसे तो खुद कहने वाले आशाराम ही  याद नहीं रख सके जबकि उन्होंने ऐश-आराम और विलासिता पर खुद ही खबरदार किया था. आखिर क्या कारण है कि आशाराम चारित्रिक फिसलन भरे रास्ते पर सुख की तलाश करने लगे ?
       जवाब यह है कि जब आदमी के पास सम्पन्नता आती है, सुख-समृद्धि के साधन बढ़ने लगते हैं तो आदमी लम्बी उम्र जीना चाहता है. उन सुखों के साधनों का लम्बे समय तक उपभोग करना चाहता है. यही आशाराम के साथ भी हुआ. शायद वृद्धावस्था में अवयस्क बालिकाओं के साथ संसर्ग कर अमृत की तलाश में जुटे थे आशाराम. वास्तविक संत बृह्मचर्य में और यौनिक इक्षाओं का दमन कर जीवन का सार खोजते हैं और ढोंगी सांसारिक सुखों को भोग में खोजते हैं.उन्हीं सांसारिक सुखों की खोज में आशाराम यह भूल गए कि जिस अवयस्क बालिका से वह प्रणय निवेदन कर रहे हैं वह उनकी बेटी ही नहीं बेटी की भी बेटी की उम्र की है.
        सम्रद्धि के साथ ही अहंकारी हो चुके आशाराम ने अपने जीवन में वास्तविक संतों को अपमानित करने जैसे पाप भी किये हैं तो उनके आश्रम द्वारा संचालित शिक्षा शालाओं के अबोध बच्चों की उनके द्वारा तांत्रिक क्रियाओं में बलि दिए जाने के आरोप उन पर पहले भी लग चुके हैं. तब अपने रसूख और दबाव से आशाराम ने उन मामलों को भले ही दबा दिया था लेकिन अब वे फिर खुल रहे हैं , अर्थात पाप से भर चुका घड़ा अब फूट रहा है.
        प्रारम्भ में आशाराम ने कांग्रेस अध्यक्ष्या सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष्य राहुल गांधी पर उन्हें साजिशन फंसाए जाने के आरोप लगाए थे. उनके समर्थक भी कांग्रेस पर उंगली उठाते हुए अपने बाबा के बचाव में उतरे लेकिन उन्हें जनसमर्थन नहीं मिला. मीडिया ने भी आशाराम का समर्थन नहीं किया. वजहें कई थीं, आम आदमी सोच रहा था कि जब बाबा रामदेव खुलेआम कांग्रेस और सरकार को देश भर में चुनौती देते हुए घूम रहे हैं और कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा भी रामदेव ही जज़र आ रहे हैं तो योगगुरू को निशाना बनाने के बजाय आशाराम जैसे व्यापारी बाबा को निशाना बनाने से कांग्रेस को क्या लाभ होने वाला है ? दूसरी सोच यह भी थी कि जब आशाराम अपने प्रवचनों में राजनैतिक भाषणबाजी करते ही नहीं तो कोई सियासी दल उनसे विरोध क्यों मानेगा? मीडिया ने आशाराम का समर्थन इसलिए नहीं किया क्योंकि उनकी करतूतों के बारे में मीडिया को पहले से ही जानकारी थी तो कई बार आशाराम ने मीडियाकर्मियों से अभद्रता कर अपने लिए हमदर्दी की गुंजाइश पहले ही ख़त्म कर डी थी.
        फिलहाल पुलिस ने आशाराम के खिलाफ जिन आरोपों के तहत चार्जशीट दाखिल की है, यदि उनमें से कोई भी प्रमाणित हो गए तो दूसरों को स्वर्ग का रास्ता बताने वाले आशाराम की शेष जिन्दगी नर्क (जेल) में ही बीत जायेगी.

                                                                                    -एस एन शुक्ल
         

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