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Sunday, 22 September 2013

कांग्रेस के मिस्त्री

uttar pradesh

                         कांग्रेस के  मिस्त्री

  उत्तर  प्रदेश में कांग्रेस की ढहती इमारत को बचाने पहले मध्य प्रदेश के  पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अर्थात दिग्गी राजा को भेजा गया था . वह राहुल   गांधी के अघोषित गुरू चाणक्य भी कहे जाते थे . अभद्र और ज़बानदराज , जिन्होंने अपनी ज़बान की खुजली के कारण कांग्रेस को कोई मदद तो नहीं की , अलबत्ता 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उतनी सीटें भी नहीं जितवा सके जितनी सीटें उसने 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से जीतीं थीं . शायद तभी कांग्रेस नेतृत्व को एहसास हुआ कि दिग्गी डैमेज कंट्रोल के बजाय और भी डैमेज कर रहे  हैं . कांग्रेस को यह देर से समझ आया कि ढहती इमारत की मरम्मत का काम तो मिस्त्री का है, उसे राजा कैसे कर  सकता है , इसीलिये उत्तर प्रदेश वाया गुजरात  मधुसूदन मिस्त्री को लाया गया है . 
     भाजपा ने उत्तर प्रदेश का पार्टी  प्रभारी अमित शाह को  बनाया अर्थात मोदी के करीबी ,विश्वस्त ,चर्चित और प्रखर हिंदुत्व का प्रतीक चेहरा तो कांग्रेस अमित शाह के जवाब के तौर पर मधुसूदन मिस्त्री को ले आयी . मिस्त्री भी कभी संघ के खाकी नेकर वाले कैडर कार्यकर्ता थे और भाजपा के पूर्व बागी शंकर सिंह बाघेला के बेहद करीबी तथा विश्वस्त . इस नाम  को आम लोगों ने सुना तभी जब वह कांग्रेस के यू पी प्रभारी बनाकर भेजे गए  और यह प्रचारित किया गया कि मिस्त्री भी गुजरात से हैं और मोदी के  धुर विरोधियों में से एक हैं . इसमें कोई दो राय नहीं कि मिस्त्री उत्तर प्रदेश में लगातार सक्रिय हैं, आम कार्यकर्ताओं से मिलकर जमीनी हकीकत से रूबरू होने की पूरी कोशिश कर रहे हैं . भावी चुनाव में जीत हासिल करने के टिप्स दे रहे हैं . मठाधीश कांग्रेसियों  में से कौन क्या कर रहा है इस बारे में आलाकमान को रिपोर्ट कर रहे हैं तो कांग्रेस के वर्त्तमान सांसदों में से कौन अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोकप्रिय है और किसका ग्राफ गिर रहा है , इससे भी पार्टी नेतृत्व को अवगत करा रहे हैं .
       इतना सब होने के बावजूद मिस्त्री कांग्रेस की ढहती इमारत की मरम्मत कर उस पर नया रंग रोगन कर चमका पायेंगे इसे लेकर खुद उनकी ही पार्टी के क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं में संदेह है. वजह यह कि कांग्रेस के बहुत सारे पूर्व नेताओं ने इन दिनों दूसरे दलों का दामन थाम रखा है तो जो पुराने कांग्रेसी हैं उनके और नयी पीढ़ी के बीच सामंजस्य नहीं बैठ पा रहा है . कांग्रेस के पास इस समय उत्तर प्रदेश में कार्यकर्ताओं से ज्यादा नेताओं और पदाधिकारियों की फ़ौज है जो सुविधाभोगी राजनीति के आदी हो चुके हैं . टिकट की प्रत्याशा में वे राज्य क्या राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की गणेश परिक्रमा कर सकते हैं लेकिन जनता के बीच जाने और उसका दुःख -दर्द जानने की उन्हें फुर्सत कहाँ है. जनता भी उन्हें नहीं पहचानती . बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का राज्य में 22 लोकसभा सीटें जीतना कांग्रेस की लोकप्रियता या उसके नेताओं का करिश्मा नहीं था . यह बढ़त उसे मुस्लिम मतदाताओं के कांग्रेस की ओर झुकाव के कारण उसे मिली थी .  वर्ष 2012 के राज्य विधानसभा चुनाव में वह जादू नहीं चल  सका क्योंकि तब तक मुलायम की समाजवादी पार्टी अपना डैमेज कंट्रोल कर चुकी थी और कांग्रेस की ओर कदम बढ़ा चुके मुस्लिम मतदाताओं ने फिर सपा की और अपने कदम वापस ले लिए थे . 
                                        

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