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Friday 1 November 2013

रीयल एस्टेट : बड़े धोखे हैं इस राह में

                                      रीयल एस्टेट : बड़े धोखे हैं इस राह में

   रिहायशी जमीनों की लगातार बढ़ती कीमतों के साथ ही मांग में भी तेजी से वृद्धि हुई है. जिन्हें मकान कि जरूरत है और जरूरत के मद्देनज़र अगले दो-चार साल में प्लाट खरीदने की योजना बना रहे थे, वे भविष्य में कीमतें और बढ़ने के भय से किसी तरह कर्जा लेकर, दोस्तों से सहयोग लेकर अथवा पत्नी के जेवर बेचकर प्लाट खरीदने कि उतावली में हैं तो जरूरतमंदों कि यह उतावली देखकर रीयल स्टेट कारोबार के ठगों और भूमाफियाओं ने भी ग्राहकों को फसाने के लिए जाल बिछा रखा है.
   आकर्षक घोषणाएं सस्ते प्लाट और फ़्लैट, बिजली, पानी, सड़क जैसी सुविधाओं के प्रलोभन और बिना पूरी जांच पड़ताल किये बिल्डर्स तथा डवलपर्स के लोक लुभावने चक्रव्यूह में फसते ग्राहक. फिलहाल लखनऊ ओर उसके आस-पास कुकुरमुत्तों कि तरह उग आई आवासीय कम्पनियां और सोसाइटियों में से कौन ईमानदारी से काम कर रहा है तथा कौन ग्राहकों को छूना लगाने कि साजिश कर रहा है, यह भेद कर पाना असंभव नहीं तो आसान भी नहीं है. लखनऊ के भावी विस्तार ओर राज्य राजधानी क्षेत्र महायोजना २०२१ के बारे में भले ही अभी सरकार, लखनऊ विकास प्राधिकरण और जिम्मेदार विभागों को पूरी जानकारी न हो लेकिन जमीनों के धंधेबाज अपने ग्राहकों को एससीआर-न २०२१ का पूरा खाका समझाकर तालाबों, पोखरों में की गयी प्लाटिंग बेच रहे हैं तो बहुतों ने बेच भी डाली है.
     बिल्डर्स और कालोनाइजर्स तो पिछले पांच सालों से इस गोरखधंधे में जुटे हैं और सैकड़ों-हजारों नहीं लाखों लोगों को भविष्य के सुनहरे सपने दिखाकर उनकी रकम अपनी तिजोरियों के हवाले कर चुके हैं.लखनऊ और उसके आस-पास की अनेकों ऐसी जमीनों पर प्लाटिंग हो गयी, दीवारें और मकान खड़े हो गए जिनका राजस्व अभिलेखों में अभी तक आवासीय भूमि के रूप में  भूउपयोग परिवर्तन भी नहीं कराया गया है . इस तरह की सबसे अधिक हेराफेरी लखनऊ-बाराबंकी रोड की जमीनों पर की गयी जहां इतनी कंपनियों ने अपने-अपने झंडे गाड़ रखे हैं और खेतों के बीच बिना उपयुक्त रिहायसी सुविधाओं और बिना समुचित प्रशासनिक कार्रवाई के इतने अधिक बहुमंजिले टावर खड़े कर दिए हैं , कि कभी उन जमीनों पर फसलें भी उगाई जाती थीं सहसा यह विशवास ही नहीं होता. 
       उच्च न्यायालय के दखल के बाद अब बाराबंकी प्रशासन की भी नीद खुली है और उसने अपनी सीमा में आनेवाले इस तरह के अवैध निर्माणों के ध्वस्तीकरण की कार्यवाई करने को विवश हो गया है. लखनऊ-बाराबंकी मार्ग पर बाराबंकी की सीमा में आने वाले ऐसे 82 निर्माणों को चिन्हित किया जा चुका है जिन्हें प्रशासन द्वारा जल्द ही अभियान चलाकर ध्वस्त किया जाएगा. इन अवैध निर्माणों में कई बड़े कालोनाइजर्स के बहुमंजिले आवासीय काम्प्लेक्स भी शामिल हैं.चूंकि यह सारी कार्यवाई हाईकोर्ट के दखल के बाद होने जा रही है इसलिए बिल्डर्स और कालोनाइजर्स के सामने अपनी इमारतों को बचाने का रास्ता भी नज़र नहीं आ रहा है. बिना नक्शा पास कराये और बिना जमीन की प्रकृति बदले कराये गए ऐसे अनाधिकृत निर्माणों में हजारों लोगों ने फ़्लैट खरीद भी रखे हैं. जब ये निर्माण ढहाए जायेंगे तो उन उपभोक्ताओं का क्या होगा जिनका पैसा इन योजनाओं में फंसा है ?
    होश तो कालोनाइजर्स के भी उड़े हैं और पंचायतों, चकरोडों, ग्रामसमाज की जमीन हथियाकर प्लाटों का आकार देकर बेचने वाले जाने जाने कितने भूमाफिया भी इन दिनों दहशत में हैं कि जब अदालत ने दखल देना शुरू किया है और बाराबंकी प्रशासन अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्यवाई की तैयारी कर चुका है तो किसी दिन उनका भी नम्बर आ सकता है.यही वजह है कि दीवाली त्यौहार आफर के नाम पर वे जल्दी से जल्दी अपनी विवादित जमीनें ग्राहकों के हवाले कर देना चाहते हैं. इसलिए सावधान हो जाइए और भूखण्ड या फ्लैट खरीदने से पहले पूरी तरह से तसल्ली अवश्य कर लें कि कहीं सस्ते या लुभावने आफर के चक्कर में आप ठगों की साजिश के शिकार होने तो नहीं जा रहे .
   
                                                              -एस एन शुक्ल 

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